"संस्कारों की
कड़ी आखिर
टूट कहाँ गयी"
सब किया था
उसने तो उसकी
एक मुसकुराहट की
किलकार के लिए....
जेब में सिक्के
खनकते छोड़ कर
वोह नोट उस पर
लुटा दिया करता था
जिनको कमाने को
कई रात खपता रहता....
चोकलेट की ऊँची मिठास
बड़े स्कूल के चौबारे
नयी किताबो की सुंगंध
नाज़ुक चमड़े के जूते....
हर हाल किया उसने
जो ना कर
सकता था वोह भी
जेब इजाज़त ना देती थी
पर इसके वास्ते उसे
झुठला देता था...
क्या वोह बेटा जानता नहीं
जो आज अकेला
छोड़े जा रहा है...
घंटो यही सोचते
बिताई थी रात उसने...
ऐसे ही एक माहोल तले
इसी बेटे के रौशन समय
के लिए वोह बूढी
माँ को छोड़ चला आया था
इसी बेटे के लिए तो
उस माँ के आखिरी
वक़्त में भी ना
जा पाया वोह....
रूठ जाता ना जो
उसके चोके चक्कों
पर ताली ना बजाई
होती...
वोह घंटो सोचता रहा
मगर समझ नहीं पाया
"
संस्कारों की
कड़ी आखिर टूट कहाँ गयी"
----ऋतू सरोहा-----
कड़ी आखिर
टूट कहाँ गयी"
सब किया था
उसने तो उसकी
एक मुसकुराहट की
किलकार के लिए....
जेब में सिक्के
खनकते छोड़ कर
वोह नोट उस पर
लुटा दिया करता था
जिनको कमाने को
कई रात खपता रहता....
चोकलेट की ऊँची मिठास
बड़े स्कूल के चौबारे
नयी किताबो की सुंगंध
नाज़ुक चमड़े के जूते....
हर हाल किया उसने
जो ना कर
सकता था वोह भी
जेब इजाज़त ना देती थी
पर इसके वास्ते उसे
झुठला देता था...
क्या वोह बेटा जानता नहीं
जो आज अकेला
छोड़े जा रहा है...
घंटो यही सोचते
बिताई थी रात उसने...
ऐसे ही एक माहोल तले
इसी बेटे के रौशन समय
के लिए वोह बूढी
माँ को छोड़ चला आया था
इसी बेटे के लिए तो
उस माँ के आखिरी
वक़्त में भी ना
जा पाया वोह....
रूठ जाता ना जो
उसके चोके चक्कों
पर ताली ना बजाई
होती...
वोह घंटो सोचता रहा
मगर समझ नहीं पाया
"
संस्कारों की
कड़ी आखिर टूट कहाँ गयी"
----ऋतू सरोहा-----
2 comments:
toooo good....simply too good...!!
luvvv u...mmuuaahhhhhh
बहुत सुंदर रितु जी - संस्कारों को बचाना और बढ़ाना हमारा कर्त्तव्य है - प्रशंसनीय रचना
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