ना कांटों का है दामन ना फुलों कि सेज सुहानी है,
ज़िन्दगी तो बस नदी सा बहता पानी है....
ना रुकी है पल को भी किसी क रोके,
रफ्तार उसकी तुफानी है.....
ज़िन्दगी और कुछ नही बस बहता पानी है ......
चली थी पहाड़ से हौले से तो बचपन,
लगी इठलाने तो जवानी है ....
हुई धीमी जो सागर मे मिलने से पहले,
तो बुढ़ापे कि भूली सी कहानी है...
ज़िन्दगी और कुछ नही बस बहता पानी है
पल भर को बिखरती है झरने से गिर कर,
फिर समेट के खुद को ,वोह आगे बड़ जानी है....
लाख रोको उसको बाँध बाना कर,
मोत् के सागर मे इक दिन मिल ही जानी है ....
ज़िन्दगी और कुछ नही बस बहता पानी है...............
ऋतू सरोहा