Tuesday, October 30, 2007




रोंदने जब ख़ुशी लगी मुझको,


हमने दर्द कि छाँव ले ली...


छुटने लगा जब जिंदगी का हाथ


हमने मौत्त कि पनाह ले ली॥




ऋतू सरोहा

टकटकी लगाए देख रहा है हर शख्स,

मुझे अक्स अपना समझ कर....

जैसे लौटी हूँ शहर में

मैं आइना बन कर ......

Thursday, October 18, 2007


क्यों कर है मेरे दिल में घाव ना पुछ,
तू देख मेरे घावो में दर्द कितना है॥

कितना हुआ दवा का असर ना देख,
तू देख गहरा मेरा ज़ख्म कितना है॥

रच गयी जो मेरी आँखों में नमी,
उजड़ा मेरे ख्वाबो का शहर कितना है॥

ठहर गयी हूँ मैं जिंदगी के एक मोड़ पर ,
गुज़रा मेरी आँखों से तबाही का मंजर कितना है॥

पराई छत के नीचे ढ़ुंढ रही हूँ आसरा मैं,
हुआ गैर मेरा अपना घर कितना है॥


ऋतू सरोहा

Thursday, October 11, 2007

बंजर आंखें


बंजर हो गयी है आंखें मेरी
ना आंसू ,ना कोई ख्वाब पनपता है.....
झाँक के देखता है जब कोई
ना जाने इनमे क्यों ,बस दर्द झलकता है .........

ऋतू सरोहा


किसी दवा से ना भरेंगे

ज़ख्म जानती है...

बंजर मेरी आंखें फिर भी

ख्वाबों से पनाह मांगती है॥


ऋतू सरोहा

Sunday, October 7, 2007

नादाँ दिल


नादाँ है मेरा दिल,
देख क्या चाहता है...
इश्क के जख्मों के लिए,
इश्क कि दवा चाहता है.....

जानता है के टूट जाएगा,
फिर भी एक ख्वाब चाहता है...
जफ़ा के शहर में खोज रहा है,
वफ़ा चाहता है...
नादाँ मेरा दिल देख क्या चाहता है....

क़त्ल होने कि चाह है इसको,
एक कातिल चाहता है...
अम्वास कि रात है,
चांद का दीदार चाहता है...

नादाँ है मेरा दिल देख क्या चाहता है....
इश्क के दिए जख्मो के लिए
इश्क कि दवा चाहता है...

ritu saroha

Monday, October 1, 2007

ज़िन्दगी......



ना कांटों का है दामन ना फुलों कि सेज सुहानी है,
ज़िन्दगी तो बस नदी सा बहता पानी है....
ना रुकी है पल को भी किसी क रोके,
रफ्तार उसकी तुफानी है.....

ज़िन्दगी और कुछ नही बस बहता पानी है ......

चली थी पहाड़ से हौले से तो बचपन,
लगी इठलाने तो जवानी है ....
हुई धीमी जो सागर मे मिलने से पहले,
तो बुढ़ापे कि भूली सी कहानी है...
ज़िन्दगी और कुछ नही बस बहता पानी है

पल भर को बिखरती है झरने से गिर कर,
फिर समेट के खुद को ,वोह आगे बड़ जानी है....
लाख रोको उसको बाँध बाना कर,
मोत् के सागर मे इक दिन मिल ही जानी है ....
ज़िन्दगी और कुछ नही बस बहता पानी है...............
ऋतू सरोहा