मिल कर गयी थी जिस दिन मुझ से तेरी बेवफाई,
उस दिन के पन्नो पर ही लिखी है सनम अपनी जुदाई॥
फूल सी ज़िन्दगी में कांटो कि सेज सजायी,
क्यों तुझे जरा सी भी लाज ना आयी ओ हरजाई॥
तेरा साथ ही तो था,
मेरी ज़िन्दगी कि पूंजी मेरी कमाई .....
फिर क्यों तू मुझे छोड़ के चला गया,
करवा के मेरी जग हँसाई ॥
ऋतू सरोहा ..
3 comments:
वाह ऋतू जी आपने क्या दर्द भरी कविताऎं लिखी है,सच में मजा आ गया.........इनमें मुझे अपनी शायरियों जैसा दर्द अनुभव हो रहा है
bahut sundar shabda paryog karke judai ka dard bayan kiya hai
bahut sundar shabda paryog karke judai ka dard bayan kiya hai
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